संगठन के प्रदेश अध्यक्ष को इको गार्डन बुला रहे शिक्षामित्र, कहा धरना रहेगा जारी
Shikshamitra News Live || उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों में कार्यरत लाखों लाख की संख्या में शिक्षामित्र प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इस उम्मीद से पहुंचा था की धरना स्थल को हम तभी छोड़ेंगे जब हमारे लिए भी प्रदेश की योगी सरकार कुछ बेहतर कर देगी। हर एक शिक्षामित्र आरपार के मूड में था और उसे उम्मीद भी थी कि इस बार सरकार शिक्षामित्रों की संख्या को देखर उनकी पीड़ा समझेगी और उन पर भी रहम करेगी। उम्मीद थी संगठन के अगुआ भी इस बार शिक्षामित्रों की मांगों पर अडिग रहेंगे और यह धरना तब तक चलेगा जब तक की शिक्षामित्रों के लिए कुछ बेहतर नहीं हो जाता। किंतु ऐसा हुआ नहीं, शाम होते ही बड़ी संख्या में शिक्षामित्र अपनी-अपनी बसों से वापस लौटना शुरू हो गए। हालांकि संगठन द्वारा शाम को यह घोषणा किया गया की धरना अनिश्चितकाल चलेगा लेकिन बताया जा रहा है कि रात होते ही संगठन के अगुआ ही इको गार्डन से गायब हो गए। हालांकि बड़ी संख्या में शिक्षामित्र अभी भी इको गार्डन में ही मौजूद है। शुक्रवार यानी आज सुबह से ही बड़ी संख्या में शिक्षामित्र स्वयं मोर्चा संभाल लिए हैं और इको गार्डन के गेट पर संगठन के नेताओं के विरोध में नारेबाजी करते हुए धरना क्यों खत्म किया गया उसका जवाब मांग रहे हैं। उनका साफ तौर पर कहना है की प्रदेश अध्यक्ष धरना स्थल पर आएं और हमें जवाब दें कि आखिर अनिश्चितकालीन धरने को क्यों खत्म किया गया।
यह तस्वीरें हैं जो हम आपको सीधे इको गार्डन से दिखा रहे हैं जिसमें आप साफ तौर पर देख सकते हैं कि किस तरह से महिला और पुरुष शिक्षामित्र संगठन के प्रदेश अध्यक्ष के विरोध में नारेबाजी कर रहे हैं और उन्हें इको गार्डन बुला रहे हैं। आम शिक्षा मित्रों का कहना है कि संगठन के शीर्ष नेता उनके उम्मीद पर खरा नहीं उतरे, बड़ी संख्या में शिक्षामित्र इस उम्मीद से लखनऊ पहुंचा था कि इस बार उनके लिए जरूर कुछ बेहतर हो जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। शिक्षामित्र को निराश खाली हाथ लौटना पड़ा और नेताओं ने भी बिना किसी निर्णय के आंदोलन को खत्म दिया। हालांकि आम शिक्षामित्र में अब आक्रोश है, उनका साफ तौर पर कहना है कि हमारे नेता ही हमें गुमराह कर रहे हैं।
बात कुछ भी हो किंतु इन शिक्षामित्रों की पीड़ा भी जायज है। 7 सालों में इनके मानदेय में 7 रुपए की बढ़ोतरी नहीं की गई। शासन और सरकार में बैठे लोगों को इनका भी दर्द सुनना चाहिए और शिक्षामित्रों लिए भी कुछ ऐसा हो जाए की जिससे इनका भी घर चल जाए, इनके भी जीवन में उजाला आ सके और खुशी-खुशी परिषदीय स्कूलों के बच्चों का भविष्य संवर सके।